CSDS: क्या शोध संस्थान या विदेशी एजेंडे का मोहरा? —  पारदर्शिता की कमी, शोध संस्थानों की विश्वसनीयता, राजनीतिक पूर्वाग्रह

CSDS: क्या शोध संस्थान या विदेशी एजेंडे का मोहरा? — पारदर्शिता की कमी, शोध संस्थानों की विश्वसनीयता, राजनीतिक पूर्वाग्रह

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CSDS और नैरेटिव बनाने का ख़तरनाक खेल!

Centre for the Study of Developing Societies (CSDS) ने खुद को एक प्रमुख शोध संस्थान के रूप में स्थापित किया है। लेकिन, क्या यह सच में एक निष्पक्ष और स्वतंत्र अनुसंधान करता है? इसके फंडिंग स्रोत, सर्वे पद्धति और परिणामों पर गौर करने पर यह सवाल उठता है कि क्या CSDS वास्तव में एक साफ-सुथरी छवि प्रस्तुत कर रहा है।

1. विदेशी फंडिंग, साफ़ एजेंडा

CSDS को विदेशी फंडिंग के जरिए बार-बार वित्तीय सहायता मिली है। यह फंडिंग उनके एजेंडे को प्रभावित करने का काम कर सकती है। अक्सर, जब कोई संस्थान विदेशी धन पर निर्भर होता है, तो वह अपने शोध को उस दिशा में मोड़ सकता है, जिससे धनदाता की इच्छाएँ पूरी हों। इस संदर्भ में, CSDS की सर्वे पद्धतियों और निष्कर्षों की पारदर्शिता पर सवाल उठना स्वाभाविक है।

CSDS द्वारा किए गए सर्वेक्षणों के परिणाम अक्सर राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर एक विशेष दृष्टिकोण को प्रस्तुत करते हैं। यह दृष्टिकोण उन फंडिंग स्रोतों के प्रभाव को दर्शाता है, जो संस्थान को अपने अध्ययन को आगे बढ़ाने में मदद करते हैं। इसके अलावा, जब अनुसंधान निष्कर्षों को सरकारों या राजनीतिक दलों के साथ साझा किया जाता है, तो यह नैरेटिव बनाने का एक ख़तरनाक खेल बन जाता है।

इस प्रकार, CSDS की विश्वसनीयता और निष्पक्षता पर गंभीर सवाल उठते हैं। हमें इस पर गहराई से विचार करने की आवश्यकता है कि क्या यह संस्थान वास्तव में सामाजिक मुद्दों की सही तस्वीर प्रस्तुत कर रहा है या फिर एक विशेष एजेंडे को बढ़ावा दे रहा है।

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